मोड़ पर छूट गई सुबह
हाथों पर से फिसलते हुए हाथ
उँगलियों के सिरे जो आखिरी सम्पर्क थे
एक चीख से टूटी नींद
कुछ जल्दी आ गई बस उस रोज
निशान जो वहाँ थे साथ के
मिट गए क्या?
सुबह को वहाँ देखा क्या?
मोड़ पर छूट गई सुबह
अब सब है पर सुबह नहीं
वह रोशन सूरज जो करता था सुबह
वह नहीं है
आईने में उसे देखा क्या?
कलरव जो उठाता था मुझे
उसे सुना क्या?
मोड़ पर छूट गई सुबह...
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