Wednesday, March 12, 2008

मोड़ पर छूट गई सुबह

मोड़ पर छूट गई सुबह

हाथों पर से फिसलते हुए हाथ

उँगलियों के सिरे जो आखिरी सम्पर्क थे

एक चीख से टूटी नींद

कुछ जल्दी आ गई बस उस रोज

निशान जो वहाँ थे साथ के

मिट गए क्या?

सुबह को वहाँ देखा क्या?

मोड़ पर छूट गई सुबह

अब सब है पर सुबह नहीं

वह रोशन सूरज जो करता था सुबह

वह नहीं है

आईने में उसे देखा क्या?

कलरव जो उठाता था मुझे

उसे सुना क्या?

मोड़ पर छूट गई सुबह...

धूप ने निचोड़ दिया एक और दिन

धूप ने निचोड़ दिया एक और दिन
की टपक रही आखिरी बूंदे
जिंदगी कुछ भाप बनकर उडी
और कुछ बूँद बन के टपकी
नमी का असर जो बाकि बच गया
वही है सरमाया मेरी कहानी का
धूप ने निचोड़ दिया एक और दिन...

Tuesday, March 11, 2008

तुम्हारे शब्द

तुम्हारे शब्द

अतीत की घास पर पड़ी हुई

ओस की बूंदों की तरह थे

जो यादों की किरणों के

पारस स्पर्श से स्वर्ण बन गए

रहने दो उन्हें अनछुए...तुम्हारे शब्द

Monday, March 10, 2008

तन्हाई की एक चीख

तन्हाई की एक चीख
पी रही है कतरा-कतरा
आत्मा के रस को

अंदर का खोखलापन बढ रहा है
दिन उबासीयों की और रात उदासियों की नज़र हुए
बाकि बस है तो वही
तन्हाई की एक चीख…

पटल पर उभरते चित्र धुंधले से
कुहासा यह चुगली करता
कि व्हो तो बिम्ब है अतीत का
बाकि बस है तो वही
तन्हाई की एक चीख…

Tuesday, March 4, 2008

कल रात कुछ अजीब थी

कल रात कुछ अजीब थी,
रेंग रही थी उंगिल्याँ उलझनों में
और दर्द की एक शिकन थी तुम्हारे चेहरे पर
एक अजनबी सी टीस मुझ में भी
यह रात और इसकी हर बात अजीब थी
उलझन से लगन थी
कयोंकी सुलझने में दर्द था
पता नहीं क्यों यूं लगता है
दर्द से भरी सुल्झन से तो
भली वो उलझन ही थी...

Monday, March 3, 2008

आवाज जो बीच थी अपने
साथ हो ली खामोशी कि ऊँगली थाम उस शाम
सहमी सी कोने में सिमटी सी
हमसफ़र थी भी और नहीं भी
मैंने सुनी आवाज उस खामोशी की
जो साथ भी और नहीं भी
सफर की अपनी कहानी है
आवाज खामोशी से साथ है लौटने को...