Tuesday, March 4, 2008

कल रात कुछ अजीब थी

कल रात कुछ अजीब थी,
रेंग रही थी उंगिल्याँ उलझनों में
और दर्द की एक शिकन थी तुम्हारे चेहरे पर
एक अजनबी सी टीस मुझ में भी
यह रात और इसकी हर बात अजीब थी
उलझन से लगन थी
कयोंकी सुलझने में दर्द था
पता नहीं क्यों यूं लगता है
दर्द से भरी सुल्झन से तो
भली वो उलझन ही थी...

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