Monday, March 10, 2008

तन्हाई की एक चीख

तन्हाई की एक चीख
पी रही है कतरा-कतरा
आत्मा के रस को

अंदर का खोखलापन बढ रहा है
दिन उबासीयों की और रात उदासियों की नज़र हुए
बाकि बस है तो वही
तन्हाई की एक चीख…

पटल पर उभरते चित्र धुंधले से
कुहासा यह चुगली करता
कि व्हो तो बिम्ब है अतीत का
बाकि बस है तो वही
तन्हाई की एक चीख…

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