उस रोज मैं बहुत दूर निकल आया
पर ये क्या मेरा हाथ थामें ये कौन
ये तुम्हारी याद साथ ही
चली, उठी, बैठी और रही,
फुर्सत के हर लम्हे दिखी
और बाकि दिन भर छिपी,
भागना चाहा मैंने इससे,
पर ये तुमसे जुदा थी
तुम तो जैसे रेत पड़ी एक लकीर थी,
उस रोज लहर के साथ हो ली,
और तुम्हारी याद,
ये तो पत्थर से लिपटी लकीर की तरह,
लहर दर लहर...रही अनमिट, अकाट.
Funny arguments
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I attended Delhi Knowledge Community session today. One of my five
colleagues was supposed to deliver a session: 3 Cs of communication:
Content, Collaborat...
13 years ago
4 comments:
Well...being a poetry fan... I really reaaly loved it :)
Keep surprising us with many more such posts.
Awesome !!
HAPPY DUSHEHRA !!
hey read ur post on mehrauli blast!! too gud
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