Saturday, November 29, 2008

इंतज़ार का सूरज
चमकता रहा
बिन एक बदल के
और सपने जैसे चाँद
उधार की रौशनी से सराबोर
एक ग्रहण भी न लगा
काले बदल भी गए भूल
भेजना बूँदें
की जिसमे भीग
होती कुछ तपिश कम...

2 comments:

Sneha Shrivastava said...

behtrin.
Awesome :)

Me said...

Yeah right Sneha...

Awesome!