Friday, June 6, 2008

मालूम है कब से है ये लकीर तुम्हारे चेहरे पर
धूप ने जब से छाओं का साथ देना शुरू किया
रात का झगडा था दिन से पुराना
पर धूप का हाथ छाओं के हाथ में
उस दिन से पहले नहीं देखा था मैंने
धूप बेचारी बेखबर है
रौशनी और अंधेरों के सिलसिले से...

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