Friday, May 2, 2008

कोने ने से मुड़ती रौशनी हम तक भी पहुँची
तुम्हारे ना चाहने से उसका मिजाज़ न बदला
कम से कम तुम्हारा जोर रौशनी पर नहीं
कभी तो लगता है शायद है
क्योंकि वह रौशनी ही तो जिससे मैं
डरा, सहमा और चौक गया
खुदा के लिए गर तुम हो तो
बंद करदो यह रौशनी
बिन आँखों के थोडी मुश्किल होगी...

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