Tuesday, July 1, 2008

पता नहीं ठीक से
की आदत रात की ख़राब है या मेरी
रोज आती भी है और परेशां भी करती है
और किसने कहाँ की गर्मियों के दिन लंबे होते है

यहां तो सिर्फ़ रातें ही लम्बी है मौसम कोई भी हो
हर लम्हें उकेरती है हजारों ख्वाहिशें
ख्वाहिशें जो अधूरि है
पता नहीं ठीक से

की आदत रात की ख़राब है या मेरी
जो पूरी हो गई वो एक भी बात
नहीं आती है याद रात

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