समझ हर पहलू की दर्द ही देती है शायद
ईसने तो दीवारें ही बनायी
मेरी समझ का रोज एक दीवार बनाना
और तुम्हारी का उसे तोड़ने से मना करना
नुक़सान तो हमारा ही हुआ
हमारे बीच सिर्फ़ दीवारे बनी टूटी नहीं
आज सोच कर परेशां हूँ
बचपन की उस सुबह
जब तुम्हारे हाथ को पकड़
नीम के साये तले
क्यों कहाँ था मैंने?
भगवान् हमें बड़ा कर दो
उसने तो बड़ा बना दिया बड़प्पन छीन कर
समझ दे दी मासूमियत छीन कर
और अब हम दीवारें बना रहे है
बचपन में होता तो शायद यही पूछता
तुम ठीक तो हो उस पार???
अब तो डर लगता है मांगते ये भी
की छीन लो ये समझ
न जाने क्या हो अंजाम?
Funny arguments
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I attended Delhi Knowledge Community session today. One of my five
colleagues was supposed to deliver a session: 3 Cs of communication:
Content, Collaborat...
13 years ago
3 comments:
Rahul,
All I can say after reading this post is that you have an amazing style of portrying emotions with words...
I really really loved each and every bit of it as it speaks a volume...
Each one of us feels at some point in our life that what if we wud not have grown up at all and the innocence was still intact...
Applauds!
Harshita
Very poignant.
Tooooooooo Goooooooood.:)
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