धुंए में गर्क सुबह शाम
तुम्हारी याद अधूरी फरियाद
जिस्म से रूह का सफर तो था मुश्किल
हर कश में थी मेरी कशमकश
हर जाम एक कदम मुफ्लिशी की तरफ़
ज़माने से मुझे नज़रे-इनायत भी नहीं मिलती
कमबख्त मेरी गुरबत भी तो दिल की है
मैं मुझ्मे और मैं मुझ्मे नहीं
मैखाने में रोज मैं एक नया मैं बनता
पर वो जो धुंए में दिख रहा अक्स
क्यों कहता है रोज...की पैमाने छलक न जायें कहीं
Funny arguments
-
I attended Delhi Knowledge Community session today. One of my five
colleagues was supposed to deliver a session: 3 Cs of communication:
Content, Collaborat...
13 years ago
1 comment:
/Har kash mein thi meri kash-m-kash/ -amazing!! kya pankti hai.
Kaunn hai apka inspiration - Mahadevi Verma.
Mahadevi ji ka hi kehna hai na -
Tujko peeda mein dhundhungi, (तुझको पीड़ा में ढूंढूंगी)
Tujme dhundhungi peeda (तुझमें ढूंढूंगी पीड़ा)
Post a Comment